Sunday, April 10, 2016

(ईं)-धनि नज़रें

अपने घर में मैं अकेला हूँ जिसे अधेड़ उम्र में भी चश्मा नहीं लगा है। शायद इसका कारण यह है कि मैंने ज़िंदग़ी मैं पढ़ाई काफ़ी कम की है। पर जितना मैं टीवी का दिवाना रहा हंँू उस हिसाब से तो मुझे लगभग अंधा हो जाना चाहिये था। ख़ैर, यह मान लेते है कि मैं इस मामले में किस्मत वाला रहा हूँ। पर आज बुरा हुआ। केनी से गाड़ी में पैट्रोल डालते हुए केनी ज़रा फिसल गई और अनु के पैरों मे पैट्रोल जा गिरा। कोना का मुँह चौड़ा था तो तेल भी काफ़ी गिरा। हड़बड़ाहट मे मैंने केनी ज़ोर से अपनी तरफ़ खींची तो ढेरों सा पैट्रोल सीधा मेरे मुँह पर आ गिरा। उस ही पल मुझे ऐसा लगा मानों किसी ने सारे चेहेरे पर आग लगा दी हो। जलन ऐसी हुइ कि मैं दर्द से कहराता हुआ नल की ओर भागा। आँखें तो लग रहा था की अब कुछ देर की ही मेहमान है, वह बुरी तरह जल रही थी। नल पर पहुँचते ही मैं एक और ग़लती कर बैठा और वह यह कि मैंने चुल्लु में पानी भरा और मुँह पर छिड़क दिया। यह ग़लती इस लिये थी कि मेरे हाथों मैं भी ढेर सारा पैट्रोल गिरा हुआ था। जलन बेहद बुरी थी। सासु माँ भागती हुइ आइ और मेरे चेहरे् पर पानी का भारी भरकम छिड़काव करने लगी। क़रीब २० मिनट पानी के बहाव के नीचे अपना मुँह रखने के बाद मैं ज़रा सी आँखें खोल पाया पर फिर भी जलन ज़बरदस्त हो रही थी, आँखें तो अलग, सारा चेहेरा जल रहा था। इस बीच भूकंप भी अा धमका और सब जगह earthquake-earthquake का शोर मंच गया पर मुझे इसका ज़रा भी इल्म न हुआ। फिर घरवालों नें चेहेेरे पे बर्फ़ की पट्टियाँ की। फिर चेहेरे पे जलने कि क्रीम लगाइ तो ज़रा आराम आया। पर इस छोटे हादसे को हुए ६-७ घंटे बीत चुके है पर आँखें अब भी जल रही हैं।