Friday, January 20, 2017

गरमा गरम करारे करारे


हिंदी मे टाइप करने का अपना ही मज़ा है। हालाँकि मैंने पढ़ाई शुरू से अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में की, मैं बचपन मे बातचीत केवल हिंदी मे ही करता था। इसके विपरीत, लिखना मुझे अंग्रेज़ी मे पसंद था और आसान भी लगता था। 

मेरी बोली में  उर्दू के ल्फ्ज़ो का इस्तेमाल भी काफ़ी रहता था। इस बात से अनजान तब तक था जब तक ६-टी कक्षा में मेरी हिंदी की अध्यापिका, जिन्का नाम श्रिमती बलजीत-काहलों था, ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे धर में कोई उर्दू का प्रयोग करता है। 

बलजीत मैडम भयंकर डिग्री की कड़क महिला थी, और मैं उतनी ही भयंकर डिग्री का डरपोक। उनकी पूछताछ पर पहले तो मुझे साँप सूंघ गया। अब तक, मैं उनके हाँथों बहुत से विद्यार्थियों के गाल गरम होते देख चुका था। हालाँकि में अब तक उन्की नज़रों में नहीं आया था,  मैंने मान लिया कि अब, गालों की गरमाइश मिलने का मेरा नंमबर आ गया था। बलजीत मैडम को आत्म-विश्वासी, परीश्रमी और हँसमुख बच्चे पसंद और मैं इनमें से कुछ भी न था। शायद मैं बचा रहा क्यूँकि मैं हद से ज़्यादा शरीफ़ था। मैडम के सवाल पूछने पर मैं सकपका के गिड़गिड़ाने लगा कि नहीं मेरे घर में कोई उर्दू नहीं बोलता। दरअसल इस तथ्य से मैं ख़ुद वाक़िफ़ नहीं था। उन्होंने मुझे प्यार से समझाया कि अगर ऐसा है भी तो इसमें कोई हर्ज नहीं और मैं उन्हें यह बात बता सकता हूँ, पर मुझे तो ख़ुद यह बात पता नहीं थी और मुझे यह लगा कि यह बात बुलवा कर मैडम मुझ ही से यह बुलवाना चाह रही हैं कि मेरी हिंदी कमज़ोर है। मैं गिड़गिड़ाता गया कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं था और मैं उर्दू बिलकुल नहीं जानता था।

मुझे समझ नहीं आ रही थी कि वह परेशान सी क्यूँ लग रही थी, पर मैं ज़्यादा जानना भी नहीं चाहता था। मैं तो सिर्फ़ वहाँ से दिवाली के रॉकेट की तरह फररर से उढ़ जाना चाहता था। ख़ैर  मैडम नें मुझे जाने दिया, पर अपने इस विचित्र व्यवहार से मैं बड़ी कुशलता से मैडम की नज़रों का कंकड़ बन बैठा। यह मानो कि शेरनी के आगे मैंने यह जता दिया कि मैं हिरण हूँ। 

अब तक तो कक्षा में मैं बलजीत मैडम के रडार में अदृश्य था, पर अफ़सोस कि इस वाक़िये के बाद ऐसा नहीं रहा। इस से पहले उन्होंने मुझे ऐसी बहुत सी ग़लतियों के लिये माफ़ कर दिया था जिंनके लिये वह कई बच्चों के ३-४ जड़ देती थी। पर अब ऐसा नहीं रहा; मिसेज़ बलजीत काहलों ने दो पलों मे अपने दिल की गहराइयों मे कड़े शब्दों मे मेरा चरित्र-चित्रण गोद दिया था। फिर वह दिन भी आ गया जिसका मुझे ज़रा भी इंतज़ार ना था। ग़लती तो याद नहीं पर मैडम काहलों की हथेली का मेरे गालों से मिलन हो ही गया। 

हिंदी मे निबंध, या कुछ भी लिखना मुझे कभी पसंद न था, पर iPhone के हिंदी कीबोर्ड के मिल जाने पर सब बदल गया। 

1 comment:

Gaurav Amit said...

घटना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है लेखक ने.